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देहदान करने वाले शिक्षकों का इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी बांसवाड़ा द्वारा सम्मान

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07 Sep 24
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देहदान करने वाले शिक्षकों का इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी बांसवाड़ा द्वारा सम्मान

शिक्षक दिवस के अवसर पर इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी बांसवाड़ा के माध्यम से देहदान करने वाले दो सम्माननीय शिक्षकों, श्री चंद्रकांत जी वैष्णव और श्रीमती बरखा जोशी, का सम्मान किया गया। यह आयोजन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बुड़ा के शिक्षक श्री चंद्रकांत जी वैष्णव और राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मूंगाणा की शिक्षिका श्रीमती बरखा जोशी की अद्वितीय समाजसेवा के प्रति समर्पण को चिन्हित करने के लिए आयोजित किया गया था, जिन्होंने देहदान का निर्णय लेकर समाज में एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत किया।

इस अवसर पर इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी के अध्यक्ष, डॉ. मुनव्वर हुसैन, सचिव डॉ. आर. के. मालोत, कोषाध्यक्ष शैलेंद्र जी सराफऔर सोसायटी की महिला विंग की सदस्य, डॉ. वनिता त्रिवेदी ने शिक्षकों के इस समाजहित कार्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि देहदान एक ऐसा महान कार्य है जो समाज के प्रति न केवल दानशीलता की भावना को प्रकट करता है, बल्कि दूसरों की सेवा में जीवन का वास्तविक उद्देश्य भी स्पष्ट करता है।  

डॉ. मुनव्वर हुसैन ने कहा, "देहदान करने वाले ये शिक्षक हमारे समाज के सच्चे नायक हैं, जिन्होंने अपने जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है और अब देहदान के माध्यम से एक नई प्रेरणा स्थापित की है। ये शिक्षकों का समाज के प्रति समर्पण और मानवता की सेवा की एक अनूठी मिसाल है।"

इस अवसर पर देहदान करने वाले शिक्षक, श्री चंद्रकांत जी वैष्णव ने अपने विचार साझा करते हुए कहा, "मेरा मानना है कि जीवन का असली अर्थ तभी साकार होता है जब हम इसे समाज के लिए जीते हैं। मैंने देहदान का निर्णय लिया ताकि मेरे शरीर का उपयोग मेरे बाद भी किसी नेक कार्य में हो सके और किसी के जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सके।"

श्रीमती बरखा जोशी ने अपनी प्रेरणा के बारे में बताते हुए कहा, "एक शिक्षक होने के नाते मैं हमेशा से समाज के प्रति कुछ विशेष करने की आकांक्षा रखती थी। देहदान के माध्यम से मुझे वह मौका मिला है। मेरा मानना है कि देहदान जीवन का सबसे बड़ा उपहार है, जो हम किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं।"

इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी के कोषाध्यक्ष शैलेंद्र जी सराफ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, "देहदान का यह निर्णय न केवल साहसिक है, बल्कि समाज के लिए प्रेरणादायक भी है। चंद्रकांत जी और बरखा जी ने अपनी शिक्षा के साथ-साथ अपने जीवन के माध्यम से समाज को जागरूक करने का यह अनूठा तरीका अपनाया है, जो अत्यंत सराहनीय है। उनकी इस सोच से प्रेरणा लेकर अन्य लोग भी समाजहित में ऐसे कदम उठा सकते हैं।

कार्यक्रम के अंत में, इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी के सचिव, डॉ. आर. के. मालोत ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "शिक्षक दिवस पर ऐसे समर्पित शिक्षकों का सम्मान करना वास्तव में हमारे लिए गर्व का क्षण है। इन शिक्षकों ने न केवल अपने छात्रों को शिक्षा दी, बल्कि समाज को भी एक महत्वपूर्ण सन्देश दिया है - कि जीवन का मूल्य उसकी लंबाई में नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता में है।"

डॉ. वनिता त्रिवेदी ने भी शिक्षकों के इस कदम की प्रशंसा की और कहा कि ऐसे शिक्षक समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत होते हैं। उन्होंने कहा, "देहदान एक साहसिक कदम है और इन शिक्षकों ने यह साहस दिखाया है। यह हमारे समाज में एक नई चेतना और जागरूकता पैदा करने का काम करेगा।"

इस आयोजन की एक विशेष बात यह भी रही कि चंद्रकांत जी वैष्णव, जो गनोड़ा के निवासी हैं — यह स्थान बांसवाड़ा से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है — बरसात के मौसम के कारण कार्यक्रम में शामिल होने में कठिनाई का सामना कर सकते थे। इस स्थिति को समझते हुए, इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी के अध्यक्ष, डॉक्टर मुनव्वर हुसैन ने अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हुए अपनी निजी कार गनोड़ा भेजी, ताकि चंद्रकांत जी कार्यक्रम में आसानी से पहुंच सकें। कार्यक्रम के पश्चात, उन्हें उसी कार से सुरक्षित रूप से उनके घर भी पहुंचाया गया। डॉक्टर मुनव्वर हुसैन की इस सद्भावना ने न केवल आयोजन की गरिमा बढ़ाई, बल्कि उनके समर्पण और सहयोग की भावना को भी दर्शाया।

कार्यक्रम के अंत में, उपस्थित संस्था के सभी सदस्यों ने शिक्षकों की इस अनूठी पहल के लिए उन्हें धन्यवाद दिया और संकल्प लिया कि वे भी समाज सेवा के कार्यों में अपना योगदान देंगे। शिक्षक दिवस का यह आयोजन देहदान के महत्व को समझने और समाज में इस भावना को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर बन गया।

इस अवसर पर इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी बांसवाड़ा के सदस्यों के साथ विद्यार्थियों, अभिभावकों, और समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों ने भी भाग लिया और देहदान के विषय पर जागरूकता फैलाई। देहदान जैसे पुनीत कार्य के लिए प्रेरणा देने वाले इन शिक्षकों को समाज ने एक नई दृष्टि से देखा और उन्हें अपना आदर्श माना।


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