GMCH STORIES

स्वयं से जुड़ना परिवार से जुड़ने की पहली सीढ़ी ” (डॉ.) डी एन व्यास

( Read 707 Times)

12 Jan 25
Share |
Print This Page

स्वयं से जुड़ना परिवार से जुड़ने की पहली सीढ़ी ”  (डॉ.)  डी एन व्यास

उद्यमिता एवं कौशल विकास केंद्र संगम विश्वविद्यालय द्वारा भारत सरकार के राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा संस्थान तथा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आर्थिक सहयोग से एक दिवसीय अंतर-पीढ़ी संबंध प्रोत्साहन कार्यशालाओं की श्रंखला के अंतर्गत  चतुर्थ कार्यशाला का आयोजन हुआ।  कार्यशाला का प्रमुख उद्देश्य युवाओं और बुजुर्गों के बीच ज्ञान के विनिमय को प्रोत्साहन देना था। कार्यशाला का आरंभ ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के समक्ष माननीय अतिथियों कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) करुणेश सक्सेना, उपकुलपति प्रोफेसर (डॉ.) मानस रंजन पाणिग्रही एवं कुल सचिव प्रोफेसर (डॉ.) राजीव मेहता के कर कमलों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। स्वागत उद्बोधन में  डॉ. मनोज कुमावत ने कार्यशाला की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सामाजिक अलगाव इतना बढ़ गया है कि करोड़ों की संपत्ति का मालिक के अंतिम संस्कार को करने से उसके पुत्र ही मना कर देते हैं।


दूसरी ओर कोटा जिसे शिक्षा की नगरी कहा जाता हैं वहां युवा बिना सुसाईड नोट लिखे आत्महत्या कर रहे हैं।
कार्यशाला के विशिष्ट अतिथि स्वामी विवेकानंद केन्द्र भीलवाड़ा के संरक्षक और एमएलवी टेक्सटाइल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. डी .एन. व्यास ने बढ़ते सामाजिक अलगाव को कम करने में युवाओं और बुजुर्गों की भूमिका के विषय में सारगर्भित जानकारी दी । उन्होंने कहा कि अमीरी और गरीबी की परिभाषा अपनों से बनती है न कि पैसे से। स्वामी विवेकानंद का उदाहरण देते हुए कहा कि युवा वायु के उस प्रवाह की तरह हैं जो राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते है।
प्रथम सत्र में कुलपति प्रोफेसर करुणेश सक्सेना ने अपने वक्तव्य में कहा कि वर्तमान युवा बीते हुये कल के ज्ञान को आने वाले कल के साथ जोड़ने के लिए सेतु का कार्य कर सकते हैं।  इसके माध्यम से पीढ़ियों के बीच बढ़ते अंतराल  को कम किया जा सकता है। उन्होंने विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे परिवार रूपी टीम के साथ मिलकर कार्य करें, ताकि सफलता के नवीन आयाम गढ़ सकें। युवाओं के हस्तक्षेप द्वारा ही बुजुर्गों के सामाजिक अलगाव को कम किया जा सकता है । उप-कुलपति प्रोफेसर मानस रंजन पाणिग्रही ने कहा कि परिवार सामाजिक व्यवस्था की प्रथम  इकाई है जिसमें तीन पीड़ियों के ज्ञान का विनिमय होता है। जो बातें एक पिता अपने पुत्र को बताता है वही बातें पुत्र अपनी संतानों को बताता है जिससे ज्ञान का एक बटवृक्ष बनता है Iद्वित्तीय सत्र में डॉ. नेहा सबरवाल ने युवाओं में एक टीम के रूप में परिवार के सशक्तिकरण को विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से रेखांकित किया। कार्यशाला में सक्रिय सहभागिता करने वाले युवाओं को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर  विभिन संकायों के सदस्य  डॉ.तनुजा सिंह, डॉ. संजय कुमार, डॉ. कनिका चौधरी ने कार्यशाला में सक्रिय सहयोग दिया। मंच संचालन और पंजीकरण व्यवस्था को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने संभाला।  कार्यशाला के अंत में डॉ. रामेश्वर रायकवार ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like