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एस-आईवीएल तकनीक से 65 वर्षीय गंभीर हृदय और किडनी रोगी को मिला नया जीवन,

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10 Jun 24
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एस-आईवीएल तकनीक से 65 वर्षीय गंभीर हृदय और किडनी रोगी को मिला नया जीवन,

उदयपुर। आज के समय में विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि कुशल चिकित्सकों से सही समय पर इलाज लिया जाए तो जटिल शारीरिक समस्याओं से प्रभावित मरीज की जान बचायी जा सकती है। लेकसिटी में भी एक ऐसा ही मामला सामने आया है जहां पारस हेल्थ अस्पताल के चिकित्सकों ने एक 65 वर्षीय महिला का हार्ट अटैक और अन्य मुश्किल स्थितियों के बावजूद सफल इलाज किया है, मरीज अभी पूरी तरह से स्वस्थ है और अस्पताल से छुट्टी हो गयी है। मरीज हृदय रोग के साथ लम्बे समय से जटिल किडनी रोग, डायबिटिज, दोनों फैफड़ों में इओसिनोफिलिक निमोनिया और ब्रेन संबंधित शारीरिक समस्याओं का सामना कर रही थी। 

मरीज 20 साल से मधुमेह, थायरॉयड और हाई ब्लड प्रेशर जैसी समस्याओं से जूझ रही थी, इस कारण उसकी किडनी कमजोर हो गई थी और 6 साल से एमएच डायलिसिस करवाना पड़ रहा था। दो बार ब्रेन का ऑपरेशन हो चुका था और घुटने का भी रिप्लेसमेंट हुआ था।  इस साल मई में उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई। उन्हें तुरंत पारस हेल्थ में भर्ती करवाया गया, जहां जांच में सामने आया कि उनकी तीनों मुख्य हृदय धमनियां ब्लॉक हैं।

पारस हेल्थ उदयपुर के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. अमित खंडेलवाल ने बताया कि “मधुमेह और अन्य बीमारियों ने उनके दिल को कमजोर कर दिया था। उनकी तीनों कोरोनरी धमनियां में ब्लॉकेज थे, लेफ्ट मेन में भी ब्लॉकेज था, जिससे उन्हें बहुत थकावट, सांस में तकलीफ और चक्कर आ रहे थे।“

डॉ. खंडेलवाल ने जब मरीज़ की पूरी जांच पता चला कि दिल की पंप करने की क्षमता कम हो गई है। साथ ही कोरोनरी एंजियोग्राफी से पता चला कि उन्हें ट्रिपल वेसल बीमारी थी, यानी उनकी तीनों मुख्य हृदय धमनियां ब्लॉक्ड थी जिसमें एक 100 प्रतिशत तथा दो 95 प्रतिशत बंद थी । “डायबिटीज़ और किडनी की समस्या के चलते ओपन हार्ट या बाईपास सर्जरी मरीज़ के लिए ज्यादा जोखिम भरा हो सकता था। इस स्थिति में ऐसी उपचार प्रक्रिया को अपनाना था जिसमें सर्जिकल प्रक्रिया न के बराबर हो। केस को देखते हुए शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लिथोट्रिप्सी (एस-आईवीएल) प्रक्रिया को सबसे उपयुक्त विकल्प माना गया। 
एस-आईवीएल में धमनियों में रुकावट को दूर करने के लिए एक विशेष गुब्बारे का इस्तेमाल किया जाता है। यह कम चीर-फाड़ वाली, बाईपास सर्जरी के मुकाबले तेजी से ठीक होने और कम जोखिम वाली तकनीक है।  मरीज़ की दो प्रमुख धमनियों पर सफलतापूर्वक एस-आईवीएल प्रक्रिया की गई और दोनों धमनियों में दो-दो स्टेंट्स लगाए गये। साथ ही उनके लक्षणों को कम करने के लिए ब्लड थीनर्स, स्टैटिन और बीटा-ब्लॉकर्स जैसी दवाओं का भी इस्तेमाल किया गया। यह तकनीक हृदय रोग से संबंधित जटिल केसेज और  जिन मरीजों में कैल्शियम की मात्रा अधिक हो जाती है उनमें काम में ली जाती है। पिछले एक महीने में यहां शॉकवेव इंट्रावस्कुलर लिथोट्रिप्सी के तीन केसेज किये हैं और तीनों सफल रहे हैं। मरीज़ के सफल उपचार करने वाली टीम में नॉन इनवेसिव कार्डियोलोजिस्ट डॉ. जयेश खंडेलवाल और क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. नितिन कौशिक भी शामिल थे।

पारस हेल्थ के नेफ्रोलॉजिस्ट  डॉ. आशुतोष सोनी ने इलाज के दौरान किडनी की देखभाल भी जारी रखी। उन्होंने बताया कि “मरीज के हृदय का इलाज करते समय उनकी किडनी को भी सही रखना  बहुत जरूरी था। हमारी टीम के कुशल व सामूहिक प्रयासों से मरीज को मुश्किल स्थितियों में भी स्वास्थ्य लाभ हुआ।  
पारस हेल्थ के एफडी डॉ. एबेल जॉर्ज ने बताया कि यह केस उदयपुर के पारस हेल्थ में मौजूद मेडिकल टीम की कुशलता और मरीज़ के प्रति समर्पण को दर्शाता है, जिन्हें जटिल और कई सारी गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों को संभालने में कुशलता हासिल है। यहां कार्डियोलॉजी और नेफ्रोलॉजी विशेषज्ञों के बीच किया गया सहयोगात्मक प्रयास अस्पताल की रोगी-केंद्रित, अत्याधुनिक देखभाल प्रदान करने की प्रतिबद्धता का एक उदाहरण है।


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