जैसलमेर के मोहनगढ़ में ट्यूबवेल खुदाई के दौरान निकली जलधारा ने भूवैज्ञानिकों को तीन संभावनाओं पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है:
टेथिस सागर से संबंध:
इस घटना से संकेत मिलता है कि यह क्षेत्र प्राचीन टेथिस सागर का हिस्सा हो सकता है। यदि खुदाई के दौरान निकली मिट्टी लाल, तलछटी और मटमैली हो, जो 30 से 60 लाख वर्ष पूर्व (टर्शियरी काल) की हो, और पानी में सोडियम क्लोराइड की मात्रा प्रति 1000 ग्राम पर 27 ग्राम (77% से अधिक) हो, तो यह टेथिस सागर का प्रमाण हो सकता है।
प्राचीन सरस्वती नदी का जल:
यह जल भंडार प्राचीन सरस्वती नदी का अवशिष्ट जल हो सकता है, जो इस क्षेत्र से बहती थी। विशेषज्ञों का मानना है कि पंजाब के मैदानों में सिंचाई के कारण भूजल स्तर में वृद्धि के चलते यह विलुप्त नदी पुनर्जीवित हो सकती है।
भूमिगत जल भंडार (Aquiferous):
तीसरी संभावना यह है कि यह जल भंडार भूमिगत एक्विफर का हिस्सा है। लाठी-चाडन जैसे क्षेत्रों में पहले भी बलुआ पत्थर और चूना पत्थर की जमाओं में जल भंडार पाए गए हैं। मोहनगढ़ में मिले जल स्रोत से करीब 50 घंटे तक पानी निकलता रहा और फिर बंद हो गया। यदि इस एक्विफर को किसी अन्य स्रोत से जल की आवक होती है, तो यह जल प्रवाह लंबे समय तक चल सकता है।
खोज का नामकरण
भूगोलवेत्ताओं ने इस एक्विफर को "विक्रम एक्विफेरस" नाम देने का प्रस्ताव रखा है।
विशेषज्ञों की राय
प्रोफेसर नरपत सिंह राठौड़, पूर्व विभागाध्यक्ष, भूगोल विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, के अनुसार यह खोज भूवैज्ञानिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि यह खोज न केवल क्षेत्र के जल भंडारों की समृद्धता को दर्शाती है, बल्कि इनके संरक्षण और शोध की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता को भी रेखांकित करती है।
यह खोज मोहनगढ़ क्षेत्र की भूवैज्ञानिक और ऐतिहासिक संपन्नता को उजागर करती है और इसके वैज्ञानिक अध्ययन एवं जल संसाधनों के सतत उपयोग के लिए नए रास्ते खोलती है।