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गांधी के सपनों का जहांन  चाहिए , मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए

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17 Mar 25
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गांधी के सपनों का जहांन  चाहिए , मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए

कोटा  राजस्थान के साहित्य साधक पुस्तक की आत्मा है , जो वर्तमान हालातों में देश को झकझोर कर , देश को क्या चाहिए इस बारे में बता रहे हैं ,,

कोटा कोटा के साहित्यक सृजनकर्ता डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल की साहित्यकारों के समन्वय को लेकर प्रकाशित पुस्तक राजस्थान के साहित्य के साधक , में विख्यात साहित्यकारों की रचनओं , उनके बारे में ,  परिचय को लेकर गागर में सागर भरा है , ,

विख्यात लेखक प्रोफेसर अज़हर हाश्मी की रचना ,, कितने असली चेहरे नक़ली चेहरे धर  रहे , ,छल से या पाखंड से तिजोरी भर रहे , ,दिन में उजले बनते है रातों की सियाही में ,, मीरा मरयम के सोदा कर रहे हैं , बहुत हुए हैं ,पतित हमे उत्थान चाहिए सत्यम  शिवम सुंदरम का मान चाहिए ,, गांधी  जी के सपनों का जहाँन चाहिए ,, मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए , शोषण है पूंजी का अत्याचार फैला है , सेवाओं में रिश्वत का व्यापार फैला है , हर फ़ाइल के बीच में  चांदी  की दीवारें ,, नौकर से अफसर तक भ्रष्टाचार  फैला है , भ्रष्टाचारी तम को अब दिनमान चाहिए , तमसो माँ ज्योतिर्गमय का ध्यान चाहिए ,, गांधी के सपनों का जहांन  चाहिए , मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए ,, अपनों से अपनों के वारे न्यारे हैं यहां ,, आश्वासनों के चाँद तारे हैं यहां ,, हर गली चौराहे पर भाषण की दुकाने , रोटियों के नाम पर बस नारे हैं यहां ,, ना भाषण ना नारों के  उद्यान चाहियें ,, भूखी आँतों को दो मुट्ठी धान चाहिए ,गांधी के सपनों का जहान चाहिए ,, मुझको राम वाला हिंदुस्तान चाहिए , यही इस पुस्तक की सुपर स्टोरी है , सुपर रचना है ,, देश के वर्तमान हालातों का दर्पण , और खुशहाल राष्ट्र के लिए एक चाहत हैं , प्रोफेसर हाशमी की साहित्यकारों , लेखकों को सीख इस तरह से है ,, जब कभी अन्याय की हों सख्तियां , बोलकर , लिखकर करो अभिव्यक्तियाँ , आप सचमुच सत्य है तो झूंठ की , ध्वस्त हो जाएंगी सारी शक्तियां ,, ,डॉक्टर अखिलेश पालरिया लिखते हैं , ,मेरे पास शब्द हैं ,, और है ,, एक संवेदनशील ह्रदय , जो दूसरों के लिए रोता भी है , और धड़कता भी हैं , उनके पास गालियां हैं , ,वे ह्रदयहीन हैं ,, और दूसरों के दुःख पर उन्हें रोना नहीं होता ,, लेखक डॉक्टर अखिलेश पालरिया कहते हैं ,, वे अट्ठाहस करते हैं ,,पापी भी हैं ,, में अपने शब्दों से , उन्हें बदलना चाहता हूँ , ,ताकि वे ,  कलंक ना बनें , ,क्योंकि ,, मानवता बचेगी तो में और वे , ,, दोनों जीवित रहेंगे ,, वोह पिता की ज़रूरत , ,चाहत पर भी लिखते हैं , यदि पिता ना होते ,, तो में में ना होता ,, डॉक्टर मधु खंडेलवाल मधुर लिखती हैं , में सम्मान  ही देना चाहती हूँ उन्हें , जो करते रहे नफरत मुझसे सदा ,, ताकि प्रेम ज़िंदा रहे मुझ में , ,,,शिखा अग्रवाल लिखती हैं , ज़िंदगी तुझ से कहाँ ,, जी भरता है , ,ज्यों ज्यों तेरी साँसे सरकती हैं , त्यों त्यों साँसें लेने का मन करता है ,, इकराम राजस्थानी की  इंजन की सीटी ,, म्हारे मन डोले ,, तो सभी जानते है , गीत बहुत मक़बूल है ,, नंदू राजस्थानी लिखते हैं ,हर सच का तू सत्कार कर , और झूंठ से इंकार कर , खुशियों का तू बाज़ार कर ,, ,और खुद को भी खुद्दार कर ,, वेदव्यास के चिंतन ,, लेखन तो सर्वविदित है ही सही , ,डॉक्टर मधु अग्रवाल लिखती हैं , एक नन्हा सा पौधा समझकर मुझे , कभी इधर तो कभी उधर रोपा गया ,, कभी मेरे बदन पर आई कली को ,अपने नाखूनों से नोचा गया ,,, रागिनी प्रसाद लिखती हैं ,, में आज भी आहत हूँ , यह सोचकर देवी के पूजन का , यह विधान केसा , जहाँ गार्लिक1 भी कोख की , और पूजा भी कोख की , कहती हुई खुद से बात करती हूँ ,, , डॉक्टर अतुल चतुर्वेदी लिखते हैं ,, डरो,, मज़लूमों की बद्दुआओं से ,,,जाने अनजाने की गई गलतियों से अहंकार से उछाले गए शब्दों से ,, धरती का हरापन  हड़पने से, भरपूर डरो  , सपनों की तिजारत करने से पूर्व , विज्ञापन में झूंठ बेचते हुए शब्दों की बाज़ीगरी से ,आत्मा को चुपचाप दफन करने से पहले बार बार डरो , , विख्यात कवि अतुल कनक लिखते हैं ,,  शांत थी झील ,, गहरी भी ,, में खड़ा रहा किनारे , बहुत देर तक , फिर ओक में भरकर पी लिया जल ,,तुम्हारी आँखों को   चूमने की इच्छा लिए ,,, जितेंद्र कुमार शर्मा निर्मोही लिखते हैं , ,मोत से जब भी जूझता हूँ में ,,ज़िंदगी पास खड़ी रहती है ,,, भारत सुंदरी रहीं,  डॉक्टर प्रीती मीणा लिखती हैं , दर्पण ,, दर्पण तू बतला ,, मुझ से सुंदर कौन ,,,,,रश्मि गर्ग लिखती हैं , संवाद समझाना है , मोन,, समझना है , एक समुन्द्र में डूबना है , दूसरा समुन्द्र बन जाना है ,, समाज की सच्चाई उजागर कर आँखें खोलने वाले साहित्य के सृजनकर्ता विजय जोशी के संदेश को भुलाया नहीं जा सकता ,,

देश भर के साहित्यकारों के साहित्यिक सृजन को चाहे न्यूज़ चेनल्स , कुछ तथाकथित प्रिंट मीडिया  के मुखियाओं ने , चाहे तुच्छ समझकर नज़र अंदाज़ कर रखा हो , लेकिन फिर भी , साहित्यिक प्रतिभाएं , साहित्यिक सृजनकर्ता , समन्वयकर्ता ,, देश भर में इसके लिए लगातार प्रयासरत है , और देश के हालातों का दर्पण बनकर मीडिया की जो देश में फसादात पैदा करने की कोशिशें हैं , उसे नाकाम करने  के प्रयासों में यह साहित्यकार जुटे हैं , ,जी हाँ दोस्तों देश भर में तो यह अभियान अपने अपने सलीक़े से चल रहा है  ,लेकिन कोटा में , पिछले कुछ दिनों , से विख्यात साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही साहिब की प्रेरणा से , कोटा के विख्यात लेखक , डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल इसे रोज़ , दिन प्रतिदिन , किसी ना किसी रूप में कर रहे हैं , वोह अब पृथक पृथक , आयु वर्ग , पुरुष , नारी , बच्चे , लेखन की विधा ,, सृजन ,, व्यवस्थाओं को लेकर ,प्रतियोगिताएं भी करवा रहे हैं , तो पुस्तकों का प्रकाशन भी कर रहे हैं , हाल ही में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल ने राजस्थान के साहित्य साधक ,, शीर्षक से ,, राजस्थान के प्रवासी , अप्रवासी विख्यात लेखकों की रचनाओं का सारांश , उनके बारे में , आम लोगों को बताने के लिए एक पुस्तक प्रकाशित की है , 383 पृष्ठ की इस पुस्तक में , क़रीब 62 लेखकों और उनकी रचनाओं के बारे में संक्षिप्त प्रकाशन है , उक्त पुस्तक की भूमिका प्रख्यात लेखक विजय जोशी ने सारगर्भित तरीके से लिखी है , 11 प्रवासी राजस्थानी विख्यात लेखकों की रचनाएँ है ,जबकि अजमेर ,, जयपुर ,, जोधपुर ,,बीकानेर ,, उदयपुर ,, कोटा ,, भरतपुर ,, सीकर के लेखकों की रचनाएँ ,, लेखकों का परिचय शामिल है , ,प्रवासी राजस्थानी लेखकों में   प्रोफेसर अज़हर हाशमी ,, दिनेश कुमार माली , किरण खेरुका ,,डॉक्टर ओम नागर ,,राजेंद्र केडिया ,राजेंद्र राव , रमाकनाट शर्मा उद्भ्रांत ,डॉक्टर रति  सक्सेना , ऋतू भटनागर ,,डॉक्टर विकास दूबे की रचनाये और संक्षिप्त परिचय शामिल है , जबकि ,डॉक्टर अखिलेश पालरिया , डॉक्टर मधु खंडेलवाल मधुर , डॉक्टर संदीप अवस्थी , शिखा अग्रवाल , डॉक्टर देवदत्त शर्मा , इकराम राजस्थानी , डॉक्टर मंजुला सक्सेना , नंद भारद्वाज , नंदू राजस्थानी , वेदव्यास , फ़ारुकख आफरीदी , डॉक्टर गजसिंह राजपुरोहित ,, जयप्रकाश पांड्या ज्योतिर्पुंज , डॉक्टर नीरज दइया , प्रभात गोस्वामी , राजेंद्र पी जोशी ,, पी एल आच्छा , डॉक्टर चंद्रकांता बंसल , डॉक्टर इंद्र प्रकाश श्रीमाली , डॉक्टर मधु अग्रवाल , मधु माहेश्वरी , प्रोफेसर डॉक्टर मंजू चतुर्वेदी , मीनाक्षी पंवार मिशान्त ,, डॉक्टर महेंद्र भाणावत ,, रागिनी प्रसाद , डॉक्टर विमला भंडारी , डॉक्टर अर्पणा पांडेय ,, डॉक्टर अतुल चतुर्वेदी , अतुल कनक , भगवत सिंह जादोन मयंक ,, सी एल सांखला ,, हेमराज सिंह हेम , जितेंद्र कुमार शर्मा निर्मोही ,, कालीचरण राजपूत ,,किशन प्रणय , डॉक्टर कृष्णा कुमारी ,, मोहन वर्मा ,, डॉक्टर प्रीति मीणा ,,रघुनंदन हठीला रघु ,, रामेश्वर शर्मा रामु भय्या , रामस्वरूप मूंदड़ा ,, रश्मि गर्ग , श्यामा शर्मा ,, डॉक्टर वैदेही गौतम ,विजय जोशी , कवि विश्वामित्र दाधीच ,,डॉक्टर इंदुशेखर तत्पुरुष , डॉक्टर पुरुषोत्तम यक़ीन ,, बालमुकंद ओझा ,, श्याम महर्षि , दीनदयाल शर्मा जैसे विख्यात लेखकों की रचनाएँ शामिल है , यक़ीनन साहित्यकारों को एक साथ करना , उन्हें एक साथ बिठाना , बैठकें करना , कार्यक्रम करना , मेंढ़क तोलने की तरह है , मेंढ़क तोलने की तरह यह कठिन कार्य तो है ही,, लेकिन आम जनता के लिए नीरस सा हो गया साहित्यिक गतिविधियों का विषय वर्तमान में कुछ लोगों द्वारा कर दिए जाने से , इसे प्रचारित करना , प्रसारित करना , समाज में इसके उद्देश्य पहुंचाना , और कार्यक्रमों के आयोजन , पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रमों में , अतिथियों का चयन भी कढ़ी चुनौती बना हुआ है , लेकिन डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल तो एक समन्वयक है , लेखक है , प्रचारक है , जनसम्पर्क विशेषज्ञ हैं , लेखन में माहिर है  ,, ऐसे में डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल मंझे हुए खिलाड़ी है , उन्हें फ़र्क़ नहीं पढ़ता के दूध फट गया है , दूध अगर फट जाए तो वोह घबराते नहीं है , तुरंत उसी फ़टे हुए दूध से पनीर बनाने की विधा , मावा हलवा बनाने की विधा के साथ उसी फ़टे हुए दूध से बहतरीन से भी बहतरीन कर लेते हैं , अभी हाल ही में , क़ानून व्यवस्था से जुड़े एक पुलिस अधीक्षक महोदय को , पूर्व स्वीकृति के अनुरूप ,, राजस्थान के साहित्य साधक पुस्तक के विमोचन में शामिल होना था , कार्यक्रम की तय्यारियाँ पूर्ण हो चुकी थी , कार्यक्रम की शुरुआत हो गई थी , लेकिन इसी बीच ,, पुलिस अधीक्षक महोदय का अचानक घरेलू काम आने की मजबूरी का संदेश आता है , डॉक्टर प्रभात कुमार सिंघल उस संदेश को देखते हैं , विचलित नहीं होते , और ठीक एक मिनट के दायरे में मंच संचालन के साथ , पुस्तक राजस्थान के साहित्य साधक के विमोचन कार्यक्रम   ,, बाल साहित्यकारों , महिला साहित्यकारों के लेखन पर आयोजित पुरस्कार सम्मान समारोह को हिट से भी सुपर हिट कर देते है , ,, यही तो लेखन विधा है , यही तो समन्वय है , यही तो साधना है , साहित्य साधक का कार्य है , अफ़सोस इस बात का है , के कोटा से प्रकाशित खुद को देश भर के बढ़े अख़बारों में गिनती करवाने वाले स्थानीय सम्पादकों को इस कार्यक्रम की पूर्व सूचना दिए जाने के बावजूद , कार्यक्रम का प्रेस नॉट भेजने के बावजूद वोह इस विज्ञापन विहीन साहित्यिक गतिविधि की खबर को हज़म कर गए , अख़बार में स्थान तक नहीं दिया , में शुक्रगुज़ार हूँ , सभी छोटे ,, मंझोले , समाचार पत्रों का जो साहित्य को जीवित रखने के संघर्ष में सहयोगी सारथि बने हैं , जिन्होंने उक्त गतविधियों का प्रमुखता से प्रकाशन किया , ओर करते रहते हैं,  एक वक़्त था , भारतेन्दु समिति कोटा  साहित्यिक संस्था की रोज़ साहित्यिक गतिविधियों को लेकर  अख़बारों में खबर हुआ करती थी , आज खबर तो दूर यहाँ साहित्यिक गतिविधियां ही नहीं है , ,एक वक़्त था , जब हम सप्ताह में एक दिन , एक पृष्ठ दैनिक अख़बार का स्थानीय साहित्यकारों की रचनाओं , कविताओं के सम्पादन से नियमित प्रकाशित करते थे , लेकिन अब स्थानीय कवि , शायर , लेखक  व्यंगकार , साहित्यकारों की रचनाये तो स्थानीय अख़बारों में लुप्त सी हो गई हैं , हाँ कुछ लोग कॉलम राइटर के रूप में ज़रूर मौजूद नज़र आते हैं , लेकिन उसमे साहित्य नहीं , घटनाये , या फिर इतिहास होता है , ,ख़ैर दुनिया जब से बनी है , तब से आज तक , किसी ना किसी रूप में साहित्य , साहित्यिक गतिविधियां जीविंत रही हैं , वर्तमान में भी कितना ही , साहित्यिक गतिविधियों को लेकर उपेक्षित माहौल हो , साहित्यिक गतिवधियां जीवित होंगी , पुनर्जीवित होंगी , क्यौंकि साहित्य है , तो समन्वय है , देश है , समाज है , साहित्य नहीं , तो जो आज मीडिया पर , कुत्तों की लड़ाई , त्योहारों का सांप्रदायिक करण करने की जो रेलम पेल हम देख रहे हैं  इससे भी बुरा नारकीय हाल हमे देखने को मिलेगा , क्योंकि बाज़ारवाद में विदेशों से रिश्वत लेकर , भारत में नफरत फैलाकर आराजकता का माहौल पैदा करवाने , अराजकता पैदा कर , भाईचारा सद्भावना बिगाड़कर राष्ट्रिय डिबेट करवाने के लिए  ,,भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमन , सुकून , भाईचारा , सद्भावना वाला देश की छवि को धूमिल कर यहां की आर्थिक स्थिति को छिन्न भिन्न करने , और विदेशी सहायता , विदेशी योजनाओं को भारत में आगमन रोकने के लिए यह सब स्थानीय गद्दारों के ज़रिये सोची समझी साज़िश के तहत किया जा रहा है , और यह सब , सिर्फ और सिर्फ हमारे साहित्यकार ,, ग़ज़ल कार , गीतकार , कवि , शायर , जो , ज़ुल्फ़ों , आँखों , होंठों , से बाहर निकल कर वर्तमान हालातों पर लिख रहे हैं , वही सब इसे रोक सकते हैं , तो साहित्यकारों ,, उठाओ क़लम , लिखो सच , करो संगोष्ठियां , बताओ कड़वा सच और बचा लो इस देश को इन नफरतों की साज़िशों से अराजकता फैलाने की साज़िशों से , फिर से इस देश को , इस भारत को , मेरा भारत महान , शाइनिंग इण्डिया ,, सोने की चिड़िया , सारे जहां से अच्छा  हिंदुस्तान हमारा बनाने की कोशिशों में  फिर से जुट जाओ , कुछ करके दिखाओ , ,, वन्दे मातरम ,, वन्दे भारत ,,, अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 9829086339

 


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