नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं को हासिल करने के लिए आधार कार्ड जरूरी नहीं है। कोर्ट ने साथ ही स्पष्ट शब्दों में कहा है कि आधार कार्ड धारकों की जानकारी किसी अन्य अथॉरिटी के साथ साझा नहीं की जाएगी। आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं और निजता का अधिकार मूल अधिकार के तहत है या नहीं, इस मुद्दे पर अब संविधान पीठ सुनवाई करेगी।
न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने आधार स्कीम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संविधान पीठ को सौंपते हुए केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार करे कि सरकारी सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आधार जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड का इस्तेमाल सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस), केरोसिन और रसोई गैस (एलपीजी) के वितरण की प्रणाली के अलावा किसी अन्य मकसद के लिए नहीं किया जाएगा। हालांकि कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि पीडीएस, केरोसिन और एलपीजी के लिए भी आधार अनिवार्य नहीं होगा। कोर्ट ने आधार योजना के तहत आधार कार्ड के लिए पंजीकरण प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार करते हुए इसे चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का यह अंतरिम अनुरोध अस्वीकार कर दिया।
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की आधार कार्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को यह फैसला करने के लिए संविधान पीठ को सौंप दिया कि क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। केंद्र का अनुरोध स्वीकार करते हुए न्यायालय ने संविधान पीठ के फैसले के लिए कुछ सवाल तैयार किए हैं जिनमें यह भी शामिल है कि क्या निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। न्यायालय ने कहा कि यदि हां, तो निजता के अधिकार की रूपरेखा क्या होगी। अब मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू इससे संबंधित विभिन्न सवालों पर विचार और फैसले के लिए वृहद पीठ का गठन करेंगे। केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने इससे पहले कहा था कि निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने के विषय पर परस्पर विरोधी निर्णय हैं और ऐसी स्थिति में इस मामले में विस्तृत बहस और सुविचारित फैसले की आवश्यकता है।